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Post by vij on Sept 13, 2013 22:58:14 GMT 5.5
Western UP has dominance of Gurjar, Jat and Muslims. The Khap or clan brotherhood ( cluster of villages belonging to a certain gotra ) plays important role. Gurjars have many khaps clans which are dominant and the major ones are like Panwar ( Khubbad), Chauhan ( Kalsyan) , Rathi, Siroha, Nagar, Bhati, Mavi, Karhana ,Bainsla,Batar, Kasana,etc.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट, त्यागी और गुर्जर समुदाय दो तिहाई संख्या में है. साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में धर्म से ज्यादा बिरादरी की पहचान होती हैं. मुग़लों के समय में हिन्दू से मुस्लिम बनी बिरादरी अब अभी पुराने नाम से पहचानी जाती हैं. मसलन मुस्लिम बने जाटों को मूला जाट, मुस्लिम बने त्यागी को महेसरा या चौधरी, मुस्लिम बने राजपूतों को रांघड़, मुस्लिम बने गुर्जर को मुस्लिम गुर्जर कहा जाता हैं. गौर करने वाली बात यह भी हैं की आज़ादी के बाद जितने भी दंगे हुए हैं इन सारी बिरादरियों (जाट, त्यागी और गुर्जर) ने कभी भी हिन्दू मुल्सिम झगड़े में हिस्सा नहीं लिया और कभी दंगे के दौर में इनकी बिरादरियों के गांव में अतिरिक्त पुलिस बल और अर्ध सैनिक बल की जरुरत नहीं पड़ी.
चूँकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश दिल्ली से सटा हुआ इलाका हैं और किसान राजनीति के लिए महशूर हैं इसलिए सारी खेती बाड़ी करने वाली जातियाँ जरूरत पड़ने पर कभी ना कभी किसान आन्दोलन में हिस्सा लेती रही हैं और जहाँ अगड़ों में त्यागी- ब्राह्मण, क्षत्रिय खेती बाड़ी से जुड़ी हुई बिरादरी हैं वहीँ पिछड़ों में जाट, गुर्जर खेती बाड़ी से जुड़ी हुई बिरादरी हैं और साथ में अति पिछड़ी जाति और दलित जो खेती और बाकी काम करने में मदद करते हैं प्रजापति, सैनी, विश्वकर्मा, नट, धोबी, कहार, कश्यप, केवट, कुम्हार, राजभर, प्रजापति, धीवर, धीमर, बिंद, माझी, गौड़, मछुवा आदि बिरादरी हैं.
वहीँ मुस्लिमों की बिरादरी जो खेती और बाकी काम में हाथ बटाती हैं उनमें अंसारी, मंसूरी, सलमानी , नट, आतिशबाज़, भिश्ती, फकीर, गद्दी, हज्जाम, इराकी/कलाल, खरदी, मिरासी, मोमिन जुलाहा, मंसूरी/धुनिया, मेव, नानबाई, निकारी, पटुआ, कलंदर, कस्साब, राइन/कुंजड़ा, शेख मेहतर, आदि हैं. वहीँ मुस्लिमों में मूला जाट, महेसरा, चौधरी, रांघड़, पोला आदि बिरादरी खेती बाड़ी से जुडी हैं. हिन्दू-मुस्लिमों का एक दूसरों की मदद के बिना काम नहीं चलता है. आपस में एक साथ जहाँ दीपावली और कावंड में मुस्लिम खुद हिन्दू के साथ त्यौहार में साथ होता हैं और साथ सारे त्यौहार मनाता हैं वहीँ ईद में हिन्दू भी मुस्लिमों के घर जाकर ईद में सेवियों का लुत्फ़ लेते हैं.
ध्यान देने वाली बात यह हैं की सभी जातियों को कहीं ना कहीं एक दूसरे की जरूरत पड़ती हैं और गांवों का तानाबाना इस तरह से बना हुआ है कि हर जाति बिरादरी एक साथ सुख चैन से रहती आई हैं. गांवों में अब भी इस तरह का माहौल है कि अगर सलमा ताई दो चार रोज़ नहीं दिखाई दें तो गाँव की औरतें राज़ी ख़ुशी लेने के लिए घर पर चली जाती हैं और वहीँ अगर लाजवंती अम्मा बीमार पड़ जाएँ तो गाँव की मुस्लिम औरतें भी उनके हाल चाल लेने घर पहुँच जाती हैं. अगर कहीं कुछ लोग साथ बैठकर हुक्का पीते हुए दीखते हैं तो अब्दुल चाचा हाथ उठाकर राम-राम कहते हुए जाते हैं और जब मुस्लिमों के मोहल्ले में राजेंद्र मजदूर को कहने के लिए जाता है और वहां मुस्लिमों को बैठे हुए देखता हैं तो हाथ उठाकर आदाब करता है.
कभी आपस में भाइयों, घर, मोहल्ले, दूसरी जाति, धर्म में कोई कहासुनी या झगड़ा हो जाता है तो पंचायत करके फैसला सुना दिया जाता है और दोनों ही पक्षों को आपस में मिलवा दिया जाता हैं. फैसला मानना इसलिए पड़ता है क्योंकि पंचों में खुद की बिरादरी और समाज के लोग भी शामिल होते हैं और अगर फिर भी मामला नहीं सुलझता तो फिर पुलिस-कोर्ट के अधीन केस जाता है पर ज्यादातर मामले कोर्ट में होने के बाद भी बाहर से ही पंचायत द्वारा फैसलों से ही ख़तम हो जाते हैं जिसमें जल्द और सस्ता न्याय गरीब लोगो को मिल जाता है और भाईचारा बनाने में दिक्कत नहीं आती.
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vij
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Post by vij on Sept 18, 2013 0:50:20 GMT 5.5
भारतीय राजनीति के गलियारों में यह कहा जाता है कि दिल्ली की गद्दी का रास्ता उत्तरप्रदेश से होकर गुजरता है यानि जिस पार्टी की जीत उत्तरप्रदेश में होती है उसी पार्टी की सरकार दिल्ली में बनती है . ये कहावत तो खत्म हो गई है लेकिन दिल्ली की राजनीति में यूपी का दबदबा बना हुआ है यही वजह 13 प्रधानमंत्री में से 9 प्रधानमंत्री यूपी से रहे हैं और सबसे ज्यादा सीटें होने की वजह से सारी पार्टियों की नजर यूपी में है.
मुजफ्फरनगर दंगे के बाद कुछ पार्टियों की बांछे खिल गई है तो कुछ पार्टियों के तोते उड़ गये हैं शायद इस दंगे के पार्टियों के वोट गणित को तहस नहस कर दिया है खासकर मुस्लिम, जाट और गुर्जर वोटर किधर रूख करेंगे कहना मुश्किल है. वहीं वोटरों की बंदरबांट से किसका फायदा होगा ये भी कहना अभी आसान नहीं है. माना जा रहा है कि इस दंगे का असर सिर्फ पश्चिमी उत्तरप्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे उत्तरप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान में पड़ सकता है. इन इलाकों में बीजेपी की नजर जाट और गुर्जर मतदाताओं पर है वहीं कांग्रेस और बीएसपी की नजर यूपी के मुस्लिम मतदाताओं पर है. यही वजह है कि दंगों की आड़ में अब राजनीति सिर्फ वोट बैंक की हो रही है .
उत्तर प्रदेश के 80 लोकसभा सांसदों में से छह मुस्लिम हैं जिनमें से चार कांग्रेस और दो बीएसपी से जीते हैं. यहां पर ध्यान देने की बात ये है कि कल्याण सिंह से दोस्ती की वजह से मुलायम सिंह को एक भी मुस्लिम सीट नहीं मिली थी . उत्तरप्रदेश में 18 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं जिसपर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बीएसपी की पैनी नजर रहती है. मुस्लिम वोटरों के लुभाने के लिए इन तीन पार्टियों में मैराथन दौड़ चल रही है. मुस्लिम वोटर जिधर झुक जाए तो उस पार्टी की नैय्या पार हो सकती है.
मुस्लिम वोटर तो पूरे उत्तरप्रदेश में फैला हुआ है लेकिन पश्चिमी उत्तरप्रदेश मुस्लिम वोटरों का गढ़ माना जाता है . वहीं इस इलाके में दलित वोटर की संख्या है और जाट-गुर्जर भी मजबूत स्थिति बनाये हुए हैं. बीजेपी को भी लगता है कि बिना उत्तरप्रदेश को फतह किए बिना दिल्ली दूर है यही वजह है कि नरेन्द्र मोदी ने अपने विश्वासपात्र अमित शाह को जिम्मा सौंपा है .
क्या है पश्चिम उत्तरप्रदेश की गणित?
पश्चिमी उत्तरप्रदेश में लोकसभा की 26 सीटें हैं ये सीटें हैं आगरा, गाजियाबाद, मेरठ, अलीगढ़, फतेहपुर सिकरी, गौतमबुद्धनगर, कैराना, मुजफ्फरनदर, सहारनपुर, संभल, फरुखाबाद, फिरोजाबाद, मुरादाबाद, एटा, अमरोहा, बागपत, बिजनौर,हाथरस,मथुरा, बुलंदशहर, रामपुर, नगीना, शाहजहांपुर, पीलीभीत, बरेली, बदांयू . इन 26 सीटों में 2009 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी को 7, सपा को 5, बीजेपी को 5, आरएलडी को 5 और कांग्रेस को चार सीटें मिली थी .
पश्चिमी उत्तरप्रदेश में सबसे ज्यादा वोटर दलितों की है, इसके बाद मुस्लिम और जाट-गुर्जरों की बारी आती है . मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बिजनौर, मधुरा और बागपत जाट बाहुल्य है जबकि मुरादाबाद, रामपुर, मेरठ, मुजफ्फरनर, सहारनपुर और कैराना में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है वहीं आगरा, हाथरस, बुलंदशहर और शाहजहांपुर में दलित मतदाता का दबदबा है .
पिछले लोकसभा चुनाव में आरएलडी और समाजवाटी पार्टी का गठबंधन था यही वजह है कि इस गठबंधन को 10 सीटें मिली थी. अब आरएलडी सपा से रिश्ता तोड़कर कांग्रेस का दामन थाम चुकी है.
किस करवट लेगा पश्चिम उत्तरप्रदेश के वोटर?
कहा जा रहा है कि मुजफ्फरनगर दंगे की वजह से मुस्लिम वोटर समाजवादी पार्टी से बिदक गई है जबकि अखिलेश सरकार बनाने में मुस्लिम मतदाताओं ने अहम रोल अदा किया और मुलायम सिंह यादव की राजनीति की दूकान चलती है. अब मुस्लिम वोटरों को लुभाने में कांग्रेस और बीएसपी लगी हुई है.
कांग्रेस को लगता है कि सांप्रदायिक तनाव की वजह से मुस्लिम वोटर समाजवादी पार्टी से नाराज हैं और मोदी के पीएम उम्मीदवार बनने के साथ ही 84 कोसी परिक्रमा जैसे कार्यक्रमों की वजह से उसे मुस्लिम वोट एकमुश्त मिलने की उम्मीद है जबकि बीएसपी भी मुस्लिम वोटरों को लुभावने में जी जान से लगी हुई है.
अब दिक्कत ये है कि कांग्रेस से अजित सिंह के नेतृत्व वाली आरएलडी से गठबंधन है ऐसे में मुस्लिम वोटर शायद ही कांग्रेस को पसंद करे ऐसी स्थिति में हो सकता है कि कांग्रेस आरएलडी से रिश्ता तोड़ ले. ऐसा होने पर आरएलडी को जबर्दस्त नुकसान उठाना पड़ सकता है. वहीं आजम खान मुस्लिम वोटरों को बनाए रखने के लिए समाजवार्टी पार्टी में रखकर पत्ता फेंक चुके हैं ये अलग बात है कि ये पत्ता काम करेगा या नहीं.
मुस्लिम वोटर किस करवट लेता है ये कहना मुश्किल है अगर बीएसपी के तरफ जाते हैं तो बीएसपी को जबर्दस्त फायदा पश्चिमी उत्तरप्रदेश में हो सकता है, अगर ये मतदाता कांग्रेस के तरफ रुख करती है तो बीजेपी को फायदा हो सकता है वहीं बीजेपी को लगता है मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बीएसपी में बटेंगे और फिर ध्रुवीकरण के सहारे कई सीटों पर कमल खिल सकता है .
एक और हवा चल रही है कि कांग्रेस बीएसपी और सपा से से समझौता कर सकती है लेकिन इसकी गुंजाईश कम है क्योंकि सपा और बीएसपी कांग्रेस को शायद 25 सीटें से ज्यादा नहीं देगी ऐसी स्थिति में कांग्रेस शायद ही समझौता करे क्योंकि कांग्रेस को पिछले चुनाव में 22 सीटें मिली है.
क्या है दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान में दंगे का असर?
पश्चिमी उत्तरप्रदेश के दंगे का असर दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान में भी पड़ सकता है. दिल्ली और राजस्थान में हाल में ही विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं . माना जा रहा है कि जाट और गुर्जर मतदाता यूपी सरकार और केन्द्र सरकार के भेदभाव से काफी नाराज हैं .
माना जा रहा है कि ये वोटर बीजेपी का दामन थामने वाले हैं. दिल्ली और राजस्थान में जाट और गुर्जर मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है ये चुनाव में निर्णायक होते हैं. विधानसभा चुनाव के अलावा लोकसभा चुनाव में भी ये मतदाता इन तीनों राज्यों में बीजेपी की तरफ झुक सकते हैं. इन दंगे का क्या असर होगा या नहीं इसका पता तो नतीजे आने का बाद ही पता चलेगा.
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Post by vij on Sept 18, 2013 0:53:40 GMT 5.5
सहारनपुर: जिलाधिकारी ने जनभवानाओं को भड़काने के आरोप में राष्ट्रवादी सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीरेंद्र गुर्जर पर रासुका लगा दी है। वर्तमान में वीरेंद्र सहारनपुर जेल में हैं और रासुका भी जेल में तामील कराई जा चुकी है।
बता दें कि अखिल भारतीय गुर्जर महासभा एंव राष्ट्रवादी सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीरेंद्र गुर्जर ने इसी माह 7 सितंबर को देवबंद में हिंदू धर्म संसद बुलाई थी। पुलिस के मुताबिक इससे जनपद में तनाव की स्थिति बन गई थी। पुलिस ने उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। इसके अलावा मुजफ्फरनगर में दारुल उलूम देवबंद के छात्रों के साथ पिटाई के मामले भी वीरेंद्र गुर्जर के खिलाफ केस दर्ज है। इससे पूर्व स्टार पेपर मिल में अपने बेटे की नौकरी के लिए टावर पर चढ़ने वाली महिला महिमा सिंह को उकसाने के आरोप के मामले में भी वीरेंद्र सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था। इन्हीं सब मामलों का संज्ञान में लेते हुए वीरेंद्र सिंह गुर्जर पर रासुका लगाने की रिपोर्ट पुलिस ने डीएम को रिपोर्ट भेज दी और डीएम ने इस रिपोर्ट पर अपनी मोहर लगाते हुए शासन को रिपोर्ट भेज दी थी। रिपोर्ट में वीरेंद्र गुर्जर पर पुलिस प्रशासन ने आरोप लगाया कि वह दुस्साहसिक एवं कट्टर मानसिकता के व्यक्ति हैं। इन्होंने 17 जुलाई को अपने साथियों व समर्थकों के साथ थाना देवबंद के मानकी मंदिर में हिंदू पंचायत का आयोजन कर धारा-144 का उल्लंघन किया। बिना अनुमति के की गई इस महापंचायत में मुस्लिम संप्रदाय के विरुद्ध उत्तेजित व आपत्तिजनक भाषण के माध्यम से हिंदू संप्रदाय को प्रोत्साहित किया गया। इसके फलस्वरूप सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत में सांप्रदायिक दंगे भड़के, जिसमें कई जान गई। पुलिस प्रशासन द्वारा भेजी गई रिपोर्ट पर शासन ने अपनी मोहर लगाते हुए वीरेंद्र गुर्जर पर रासुका लगाते हुए उन्हें जेल में तामील भी करा दी है। उधर, हिंदू संगठनों में कार्रवाई को लेकर उबाल है। भाजपा व आनुषंगिक संगठनों ने कहा है कि प्रशासन एकतरफा कार्रवाई कर हिंदू समाज का उत्पीड़न कर रहा है। इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ेगा।
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Post by vij on Sept 22, 2013 23:31:30 GMT 5.5
The BJP will not have an alliance or a “tacit understanding” with any party in Uttar Pradesh for 2014, Narendra Modi’s political aide Amit Shah said.
Shah, who in five months as general secretary in charge of Uttar Pradesh claims he has covered every district except Allahabad, told The Telegraph: “There is no question of an alliance. We are fighting to wrest the maximum number of seats and so each one matters to us.”
Asked about the prospect of tying up yet again with Ajit Singh’s Rashtriya Lok Dal (the BJP had an alliance with it in 2009), Shah said: “The question does not arise. It is almost unprecedented that the Jats and Gujjars have consolidated around the BJP, so why should we let down our voters?”
The buzz is that Ajit had tapped the BJP so that the party does not put up strong candidates against him and his son, Jayant Chaudhary.
In 2009, Ajit won from Baghpat and Jayant from Mathura after a pact with the BJP that used to have a huge following in western Uttar Pradesh in the Ayodhya era and thereafter.
A source close to Ajit rubbished the talk as “pure speculation”. But BJP sources in western Uttar Pradesh said that without their backing, Ajit and his son would find it hard to keep their seats.
Asked about Ajit’s supposed overtures, Shah said: “It is impolitic to talk about other parties and their leaders.”
After the Muzaffarnagar communal violence, there is a belief in the BJP that if it sticks to the line against alleged “minority-appeasement” by other parties, it could harness the Hindu votes. Shah said Jats and Gujjars are on the same side, a rarity, to protest the Samajwadi Party’s alleged “minority-appeasement policy”.
In its attempt to recoup in western Uttar Pradesh, the BJP has brought to the forefront the MLA quartet of Suresh Rana, Bhartendu Singh, Hukkum Singh and Sangeet Som.
The idea is to lead the charge against the “secular brigade”. They had allegedly made incendiary speeches and one of them, Rana, was arrested today.
In tow was a non-MLA preacher, Sadhvi Prachi, a Dalit from western Uttar Pradesh. She completes the caste axis of Jat-Gujjar-Thakur, represented by the other four.
As the BJP has begun scouring its ranks for Lok Sabha candidates, Modi is set to hit the campaign trail with a rally in Kanpur on October 15, followed by Jhansi on October 25 and Bahraich on November 8.
Modi’s first leg in Uttar Pradesh will be marked by rallies in smaller towns. After assessing the response and outcome, sources said, he will sally forth into the bigger cities and hit Lucknow the last.
BJP president Rajnath Singh, who is from Uttar Pradesh, will accompany him everywhere. Rajnath will visit Muzaffarnagar tomorrow morning.
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vij
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Post by vij on Nov 3, 2013 3:32:38 GMT 5.5
सहारनपुर : पुलिस-प्रशासन द्वारा कोई भी ठोस साक्ष्य प्रस्तुत न किए जाने के कारण स्टेट एडवाइजरी बोर्ड ने राष्ट्रवादी सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष विरेंद्र गुर्जर पर लगी रासुका हटा दी है। इसकी पुष्टि प्रशासनिक अधिकारियों ने की है।
बता दें कि अखिल भारतीय गुर्जर महासभा एवं राष्ट्रवादी सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीरेंद्र गुर्जर पर 7 सितंबर को देवबंद में हिंदू धर्म संसद बुलाने के बाद से पुलिस प्रशासन उनकी घेराबंदी की तैयारी में जुट गया था। इसके तहत पुलिस ने विरेंद्र गुर्जर की पुरानी फाइलें खोल दी थी, ताकि उन पर रासुका लगाई जा सके। पुलिस प्रशासन अपने मकसद में कामयाब भी हुआ और सितंबर में कुतुबशेर थाना क्षेत्र में विरेंद्र गुर्जर को गिरफ्तार कर जेल भेजने के बाद पुलिस प्रशासन ने उन पर रासुका की कार्रवाई कर दी। इसके विरोध में गुर्जर समाज लामबंद हुआ और पुलिस प्रशासन के खिलाफ महापंचायत का ऐलान कर दिया था। गुर्जर नेताओं की मान मनोव्वल के बाद पंचायत स्थगित कर दी गई थी, लेकिन गुर्जर नेताओं की मांग थी कि यदि विरेंद्र गुर्जर पर लगी रासुका को 15 दिन के अंदर नहीं हटाया गया तो गुर्जर समाज महापंचायत के लिए बाध्य हो जाएगा। विरेंद्र गुर्जर पर रासुका तामील किए जाने के बाद विरेंद्र गुर्जर की ओर से रणधीर सिंह एडवोकेट ने जेलर व डीएम के माध्यम से स्टेट एडवाइजरी बोर्ड लखनऊ, राज्यपाल व केंद्रीय एडवाइजरी बोर्ड के समक्ष प्रत्यावेदन किया था। स्टेट एडवाइजरी बोर्ड ने इस मामले में 9 अक्टबूर को सुनवाई की थी। जिसमें स्वयं उपस्थित होकर विरेंद्र गुर्जर ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि मानकी मंदिर या किसी भी स्थान पर उन्होंने कभी ऐसा भाषण नहीं दिया जिससे की माहौल खराब हो। उन्होंने हर मामले में अपनी बात को मजबूती के साथ रखा। इनके बाद डीएम व एसएसपी ने भी अपना पक्ष रखा। दोनों को सुनने के बाद एडवाइजरी बोर्ड ने साफ कर दिया कि यह केस रासुका के लिए उपयुक्त नहीं है। डीएम अजय कुमार सिंह ने भी पुष्टि की है कि बोर्ड ने केस रासुका चलाने के लायक नहीं माना है।
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