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Post by vij on Mar 5, 2014 23:13:23 GMT 5.5
NIHARIKA SINGH MAY GET TICKET FROM RAJASTHAN Promoting their kin in politics is no longer the monopoly of leaders of a single political party. And in Rajasthan, its roots are getting deeper as the 'culture' has been adopted with ease by both the Congress and the BJP. CM Vasundhara Raje's daughter-in-law Niharika and former CM Ashok Gehlot's son Vaibhav are in the race for Lok Sabha tickets. Raje's 40-year-old son Dushyant Singh is already a sitting MP from Jhalawar, the constituency Raje vacated after becoming chief minister in 2003. Dushyan't wife Niharika, 38, belongs to the former princely state of Samthar near Jhansi (UP), once ruled by the Gujjars. Her father Ranjeet Singh Judeo is also a Gujjar leader. So it wasn't a surprise when her name popped up for the Sawai Madhopur-Tonk constituency, which has a sizeable Gujjar votebank. Former CM Ashok Gehlot's son Vaibhav is among the frontrunners for a ticket from two constituencies - Sawai Madhopur–Tonk and Jalore-Sirohi. However, state congress president and Union minister Sachin Pilot and AICC general secretary in-charge Gurudas Kamat are said to be opposed to fielding Vaibhav. On Monday, the Congress "elected" Rajbala Ola as its candidate from Jhunjhunu that in 2009 had returned her father-in-law Union minister and Jat strongman Sis Ram Ola, who died recently The link - www.dailymail.co.uk/indiahome/indianews/article-2572439/Dynasties-work-Lok-Sabha-polls-Leaders-relatives-bank-legacy-fight-election-tickets.html
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Post by vij on Mar 6, 2014 1:11:37 GMT 5.5
घेराबंदी से बच पाएंगे अजित ?
लोकसभा चुनाव के लिए अजित की जबर्दस्त घेराबंदी की जा रही है। चौधरी चरण सिंह के समय से ही रालोद हमेशा जाट और मुस्लिम मतों को एक जगह लाकर जीतती रही है पर इस बार ये काम आसान नहीं नजर आ रहा है। पहले समाजवादी पार्टी ने उनके सामने पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री सोमपाल शास्त्री को प्रत्याशी बनाया था। शास्त्री वो शख्स हैं जिन्होंने अजित सिंह को उनकी राजनीतिक जीवन की एकमात्र हार का स्वाद चखाया था। भाजपा के बैनर पर शास्त्री ने उन्हें हराया था और इसके इनाम स्वरूप उन्हें केंद्र में कृषि मंत्री बनाया गया था। हालांकि वे उस सरकार का हिस्सा थे जो 13 महीने ही चली थी। वाजपेयी सरकार अल्पमत में आने के बाद गिर गई थी और फिर जब दोबारा चुनाव हुए तो अजित ने शास्त्री को हरा दिया था। उस समय जाटों का तर्क था कि अजित की हार के बाद उनकी आवाज उठाने वाला कोई नहीं रहा था। बाद में सोमपाल की बात भाजपा से बिगड़ गई। वे कांग्रेस में भी गए और इस बार सपा से प्रत्याशी बन गए लेकिन मुजफ्फरनगर दंगे के बाद उन्हें लगा कि जाट तो सपा को वोट देंगे नहीं ऐसे में चुनाव लडऩे का मतलब आत्महत्या करने के समान होगा। उन्होंने टिकट वापस कर दिया तो मुलायम ने तुरंत सिवाल खास (बागपत) के विधायक गुलाम मोहम्मद को टिकट दे दिया। दूसरी ओर, भाजपा ने मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह को टिकट देने का मन बना लिया है। ऐसे में अजित के जाट वोट तो कटेंगे ही। मुसलमानों की पहली पसंद भी जाहिर तौर पर सपा का मुस्लिम प्रत्याशी रहेगा। बसपा के बैनर पर एमएलसी प्रशांत चौधरी (गुर्जर) प्रत्याशी हैं। इन हालात में अजित की राह आसान नहीं नजर आती।
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Post by vij on Mar 6, 2014 23:20:21 GMT 5.5
सहारनपुर : गुर्जर समाज ने लोकसभा चुनाव में उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कहा कि समाज किसी भी हालत में उपेक्षा बर्दाश्त नहीं करेगा और लोकसभा चुनाव में इसके नतीजे सामने आएंगे। गुर्जर समाज की दिल्ली रोड स्थित गुर्जर भवन में आयोजित बैठक में आनंद प्रकाश आर्य, धर्मवीर घसौती ने कहा कि सहारनपुर गुर्जर बाहुल्य जिला है। कांशीराम जैसे दिग्गज नेता को गुर्जर ने ही हार का स्वाद चखाया था। भाजपा में गैर गुर्जर प्रत्याशी एक लाख का आंकड़ा तक नहीं छू पाया है। यशदेव गुर्जर ने कहा कि गुर्जर समाज अपने हित के प्रति जागरूक हो चुका है और इसका परिणाम चुनाव में सामने आएगा। गुर्जर महासभा के मंडल अध्यक्ष राजकुमार खेडी ने कहा कि यदि भाजपा विधायक को टिकट दिया गया तो उसका विरोध किया जाएगा। प्रधान रामकुमार ने कहा कि गुर्जर आरक्षण आंदोलन में तत्कालीन भाजपा सरकार ने गुर्जरों पर जुल्म ढाया था। इसके बावजूद पुराने जख्म भुलाकर गुर्जर समाज नरेंद्र मोदी के साथ खड़ा हुआ है और राजस्थान में सरकार बनवाई है। मगर सहारनपुर में गुर्जर समाज की उपेक्षा भाजपा को भारी पड़ सकती है। बैठक में परीक्षित वर्मा, जसबीर सिंह, रामपाल, बबलू, हरपाल सिंह, वेदपाल सिंह, प्रदीप, संदीप पंवार, रविंद्र, किशोरी लाल आदि मौजूद रहे।
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Post by vij on Mar 6, 2014 23:24:00 GMT 5.5
फरीदाबाद लोकसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है और इसको लेकर आचार संहिता भी लागू हो चुकी है। फरीदाबाद लोकसभा सीट पर अब तक जहां सीधा मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच रहता था, वहीं आम आदमी पार्टी भी बीच में आ चुकी है। फरीदाबाद लोकसभा सीट के लिए रकॉर्ड तोड़ सबसे ज्यादा दावेदारी आम आदमी पार्टी में हुई है। 400 लोगों ने आप से फरीदाबाद लोकसभा सीट की टिकट मांगी है, जो कि हैरान कर देने वाला आंकड़ा है। 400 ने मांगी टिकट : आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनावों में जो अप्रत्याशित नतीजे हासिल किए थे, उसके बाद अब तय माना जा रहा है कि इसका असर लोकसभा चुनावों पर भी पड़ेगा। आप के जिला संयोजक आभाष चंदीला ने बताया कि हमारी पार्टी से 400 लोगों ने फरीदाबाद लोकसभा सीट की टिकट मांगी हैं, इनमें ऑटो ड्राइवर से लेकर, उद्योगपति, नौकरीपेशा, राजनीति में पहले से सक्रिय लोग, व्यवसायी आदि सभी शामिल हैं। इन 400 दावेदारों में से 90 को शॉर्टलिस्ट किया गया था, जिनको इंटरव्यू लिया जा चुका है। कांग्रेस ने भी भेजे नाम : जिला कांग्रेस अध्यक्ष बी. आर. ओझा ने बताया कि फरीदाबाद लोकसभा सीट के लिए दो लोगों ने दावेदारी की है, जिनमें एक वर्तमान सांसद अवतार भड़ाना हैं तो दूसरे करण दलाल। दूसरी तरफ कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि कैबिनेट मंत्री महेंद्र प्रताप भड़ाना के बेटे विजय प्रताप भड़ाना भी अपनी दावेदारी पेश कर चुके हैं। [/b] बीजेपी से भी कई दावेदार : बीजेपी के जिला अध्यक्ष अजय गौड़ ने बताया कि बीजेपी से कुल 12 लोगों ने फरीदाबाद लोकसभा सीट के लिए टिकट की दावेदारी पेश की है। इनमें मुख्य रूप से कृष्ण पाल गुर्जर, रामचंद्र बैंदा, यशवीर डागर, मनधीर सिंह मान आदि शामिल हैं। सभी की लिस्ट राज्य स्तर पर भेज दी गई है, जहां पर एक प्रत्याशी के नाम पर मुहर लगेगी। आईएनएलडी भी जुटी : आईएनएलडी के जिला प्रधान नगेंद्र भड़ाना का कहना है कि फरीदाबाद लोकसभा सीट के लिए पार्टी से 21 लोगों ने दावेदारी पेश की है। पूरी लिस्ट राज्य स्तरीय कमेटि के पास भेज दी गई है, आईएनएलडी सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला का फैंसला अंतिम होगा।
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Post by vij on Mar 6, 2014 23:33:38 GMT 5.5
NOIDA: Congress sources have said that Amar Singh is likely to be the party candidate for general elections from Gautam Budh Nagar constituency. A crucial meeting is to be held on Thursday after which the name will be finalized.
Earlier, it was expected that Congress would declare the name of Thakur Dhirender Singh as its candidate for Lok Sabha polls. During the Bhatta-Parsaul land row, Singh had taken Rahul Gandhi to the twin villages on his motorbike. Dhirender Singh said he had no problems with Amar Singh's nomination. "Amar Singh is a senior leader and veteran in Indian politics. I, as a worker, will extend my support to him," Singh said.
Samajwadi Party has already nominated Narender Bhati, who belongs to the Gurjar community and had made headlines when he claimed to transfer IAS officer Durga Sakthi Nagpal after her crackdown on sand mafia. BSP is likely to consider sitting MP Surender Singh Nagar, while BJP is mulling over Dr Mahesh Sharma.
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Post by vij on Mar 6, 2014 23:39:15 GMT 5.5
नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में अपने खोए जनाधार को इस बार नरेंद्र मोदी के सहारे पाने का सपना तो जरूर देख रही है। पर पार्टी का नेतृत्व उम्मीदवारों के चयन के मामले में विरोधाभासों का शिकार है। मसलन, पार्टी को लगता है कि नरेंद्र मोदी की लहर के चलते मतदाता उम्मीदवार का चेहरा नहीं देखेंगे। ऐसे में जिसे भी टिकट दिया जाएगा, वही जीत जाएगा। पर हकीकत उलट है। आम आदमी पार्टी के उदय के बाद अब मतदाताओं ने उम्मीदवार के चेहरे को भी अपने फैसले का आधार बना लिया है। चुनाव की घोषणा में अब ज्यादा समय नहीं है पर भाजपा अभी तक उम्मीदवारों की घोषणा से ही परहेज कर रही है, जबकि प्रदेश में उसके विरोधी सपा और बसपा अपने-अपने उम्मीदवारों का एलान महीनों पहले ही कर चुकी हैं। विरोधाभास की एक बानगी बागपत में दिखती है। जहां अजित के मुकाबले पार्टी ने इलाके के वाशिंदे मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त सत्यपाल सिंह को उतारने का फैसला कर रखा है। टिकट के वादे पर ही सत्यपाल ने समय से पहले नौकरी छोड़ी है। पार्टी के उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव और नरेंद्र मोदी के खास अमित शाह ने सूबे के नेताओं और संघ परिवार दोनों से कह दिया है कि सत्यपाल सिंह को टिकट का वादा कर वे पार्टी में लाए हैं। उधर बागपत में भाजपा टिकट के तमाम दावेदारों के चेहरे लटक गए हैं। उनका कहना है कि भाजपा अजित सिंह को हराना ही नहीं चाहती। संघ के एक बड़े प्रचारक ने भी माना कि 1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार सोमपाल शास्त्री के हाथों बागपत में अजित को मिली पराजय के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट भाजपा से रुठ गए, जबकि इससे पहले बागपत को छोड़ कर सारी जाट बहुल सीटें भाजपा लगातार जीत रही थी। दरअसल अजित सिंह को जाट अभी भी चौधरी चरण सिंह के बेटे के नाते राजनीति में शिखर पर देखना चाहते हैं। इसीलिए भाजपा ने 2002 के विधानसभा चुनाव और पिछले लोकसभा चुनाव में अजित से तालमेल भी किया था। इस बार मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाटों में भाजपा का प्रभाव बढ़ा दिख रहा है। पर अजित सिंह के मुकाबले दमदार उम्मीदवार देने का पार्टी को दूसरी सीटों पर नुकसान होने का खतरा दिखता है। पिछले चुनाव में भाजपा ने दस सीटें जीती थीं। कायदे से इन सभी सीटों से पुराने उम्मीदवारों की घोषणा पहले ही हो जानी चाहिए थी। पर वरुण गांधी पीलीभीत छोड़ सुल्तानपुर चले गए तो उनकी मां आंवला छोड़ फिर पीलीभीत जा रही हैं। राजनाथ सिंह के गाजियाबाद से लड़ने पर भी असमंजस है। लालजी टंडन लखनऊ से जीते थे। वे दुखी हैं कि उन्हें अभी तक आलाकमान ने तैयारी में जुटने को क्यों नहीं कहा। उधर, में इस सीट से कभी नरेंद्र मोदी तो कभी राजनाथ सिंह के उम्मीदवार बनने की खबरें आ रही हैं। कल्याण सिंह और उमा भारती जैसे पिछड़े नेताओं और अपने प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी के बल पर भाजपा उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा को कड़ी चुनौती दे सकती है। पर कल्याण सिंह को अभी तक पार्टी में शामिल ही नहीं किया गया है। बेशक वे मोदी की सभाओं में तो जरूर दिख रहे हैं पर अपनी तरफ से उन्होंने चुनाव प्रचार और रैलियों की शुरुआत अभी तक नहीं की है। उम्मीदवारों के चयन में अपनी अनदेखी से भी वे दुखी बताए जा रहे हैं। यही पीड़ा उमा भारती की भी है। यूपी में अपनी उपेक्षा से खिन्न होकर वे खुद ही उत्तराखंड की प्रभारी बन गईं। उन्हें झांसी से मैदान में उतारने के संकेत हैं पर पार्टी के निर्णायक मंडल से वे पूरी तरह बाहर दिख रही हैं। पार्टी में उम्मीदवारों की उम्र को लेकर भी विरोधाभासी रवैया है। आरएसएस ने सलाह दी थी कि 75 पार के लोगों को लोकसभा चुनाव न लड़ाया जाए। इसके तहत लालकृष्ण आडवाणी को रिटायर कर राज्यसभा में भेजने की कोशिश हुई थी। पर आडवाणी अड़ गए। अब आडवाणी व शांता कुमार जैसे बुजुर्ग तो लड़ेंगे पर बुढ़ापे की दुहाई देकर मुरली मनोहर जोशी (वाराणसी) और लालजी टंडन (लखनऊ) को आराम करने की सलाह दी जा रही है। इसके उलट विधायक दल के नेता हुकुम सिंह गुर्जर का कैराना से फिर उम्मीदवार बनना तय है। 78 साल के हुकुम सिंह पिछले चुनाव में अजित से तालमेल और तमाम अनुकूल समीकरणों के बावजूद हार गए थे। पर हारे को हरिनाम भजने की सलाह उन्हें नहीं दी जा रही। उम्मीदवारों के चयन में दागियों की भी पौ-बारह तय है। आजमगढ़ में बाहुबली रमाकांत यादव चूंकि पिछली दफा जीते थे सो, फिर लड़ना तय है। मुजफ्फरनगर में कुख्यात अपराधी राहुल कुटबी के रिश्तेदार संजीव बालियान को भी उम्मीदवार बनाने का पार्टी नेतृत्व पहले से फैसला कर चुका है। नरेंद्र मोदी को अतिपिछड़ों का नेता बताने की कोशिश भी पार्टी के लिए घातक हो सकती है। दरअसल यूपी में अति पिछड़ों की आबादी ज्यादा नहीं है। इसके उलट जाट, यादव, कुर्मी, गुर्जर और लोध ही ज्यादा हैं। कुर्मियों को जोड़ने के लिए पार्टी अपना दल के संस्थापक सोने लाल पटेल की बेटी अनुप्रिया पटेल को भी लोकसभा चुनाव लड़ाने के मूड में दिख रही है। नरेंद्र मोदी को भुनाने के फेर में एक तबका उनकी शान में जो नारे गढ़ रहा है, उनका भी प्रतिकूल असर हुआ है। भाजपाई नारा दे रहे हैं- हर-हर मोदी, घर-घर मोदी। दरअसल हिंदुओं में हर-हर केवल भगवान या देवी देवताओं के लिए इस्तेमाल होता है। मसलन, हर-हर महादेव या हर-हर गंगे आदि। एक तरफ ज्यादा सीटें जीतने की चाहत है तो दूसरी तरफ पुराने कार्यकर्ताओं और कद्दावर नेताओं की उपेक्षा हो रही है। सत्यपाल सिंह के अलावा भी इसके कई उदाहरण सामने आएंगे। मसलन, सूबे के पूर्व दलित डीजीपी ब्रजलाल को पार्टी में लेकर बाराबंकी में कांग्रेस के पीएल पूनिया के मुकाबले उतारने की भी चर्चा है।
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Post by vij on Mar 6, 2014 23:45:22 GMT 5.5
His silver tongue and riches culled from the mining business are probably his biggest assets. Four-time Congress MP Avtar Singh Bhadana (56), a Gujjar from Faridabad, is an adaptable politician.
Having won his first Lok Sabha election in 1991 from Faridabad, the mining entrepreneur-turned-politician shifted to Meerut Lok Sabha constituency (Uttar Pradesh) in 1999, comfortably winning the seat on the Congress symbol during a pro-BJP wave. He switched back to Faridabad Lok Sabha constituency, winning in 2004 and 2009.
Bhadana is known to captivate his voters with his earthy mannerisms, outspokenness and of course, his riches. “I have never hesitated to open my coffers for the people of Faridabad,” the MP says. “And I have never bothered to avail the comforts and privileges an MP is entitled to. You know, when I was a minister in Haryana, I did not take any salary. Once as a minister, I had to use the Haryana government aircraft for official business. But I paid for the journey from my own pocket,” he says proudly.
related story Ex-minister Singla eyes Cong nod; Manpreet’s moves hold key ‘I have always given respect as well as support to my voters’ Realty bites as ticket eludes Atwals Statistics of his spending from the MPLAD (member of Parliament local area development) funds show that a major chunk has been spent by the MP either on getting streets/pathways constructed in several nooks and corners of his Lok Sabha constituency or on creating facilities of public utility such as chaupals and community centres. (In pic, Avtar Singh Bhadana's rival Krishan Pal Gurjar, former Haryana BJP chief)
‘Tip of the iceberg’ Bhadana, though, thinks that his MPLAD spending is just the tip of the iceberg. “I am responsible for bringing the Metro rail to Faridabad. The construction of the Badarpur flyover, four and six-laning of many arterial roads in my constituency, such as Faridabad to Gurgaon, Sohna-Ballabhgarh, Hodal-Sohna and Sohna-Palwal, took place due to my relentless efforts,” he says. The MP also claims credit for the allocation of funds and projects under the Jawaharlal Nehru Urban Renewal Mission (JNNURM) to Faridabad.
“My biggest achievement has been staying connected with the people and addressing their grievances. I have always stood by them in joy as well as sorrow,” says Bhadana.
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Post by vij on Mar 7, 2014 0:21:16 GMT 5.5
JAIPUR: Immediately after the BJP registered a massive victory in the assembly polls, Vasundhara Raje in her address to the party workers directed them to keep up the momentum alive and ensure that the party wins all the 25 Lok Sabha seats. Though it might seem not a big challenge with the BJP winning 163 of the 200 assembly seats in December, it is not exactly a cakewalk.
Sources within the party and political experts do give BJP a clear edge but also claim that as on the present situation, the party is expected to win nearly 18 to 20 seats. "The party will win at least 18 seats but for the remaining, it walks on a tightrope and faces tough competition. The key on these constituencies is the right candidate," said a senior member of the party.
The constituencies which the party is paying special attention to are Karauli-Dholpur, Bharatpur, Jhunjhunu, Dausa, Dungarpur-Banswara, Ajmer and Chittorgarh. "The state government recently campaigned for 11 days in the Bharatpur division in order to win over support in the area. The party does not have much support in the Gujjar-Meena belt of Karauli-Dholpur while the Jat-SC combination in the Bharatpur constituency might not go in its favour," said a senior leader.
The situation is quite similar in Jhunjhunu, where the BJP has never managed a victory. The party was contemplating on fielding a Rajput but that would mean losing the support of Jats, who are in a majority there. In Ajmer too, only a well placed candidate would be able to give a good contest to Gujjars and minority voters, both of which are likely to swing in favour of the Congress. The BJP is also reportedly searching a candidate strong enough to withstand the popularity of Mahendrajeet Singh Malviya in Dungarpur, Banswara. Malviya is the only member of Ashok Gehlot cabinet - apart from Gehlot himself - who won the recent assembly polls despite the BJP wave in the state.
Political experts claim that with a proper candidate selection, the party can raise its tally to above 20. Most, including senior BJP leaders, do not give the party all the 25 seats. The party has prepared a panel of three probable names for each of the constituencies through a series of feedback meetings, during which the party workers were asked for suggestions of names. Raje, who is leaving for Delhi on Thursday, is expected to discuss the names of probables with the senior leaders during the trip.
East Rajasthan, seniors could be Congress's saviours
The Congress has chosen to launch its Lok Sabha election campaign in the state from the Gujjar-Meena belt in the east, instead of the tribal belt of south-west Rajasthan on which it laid heavy emphasis in the assembly elections.
Congress vice-president Rahul Gandhi would begin the campaign from Deoli near Tonk on March 10. The area is dominated by Gujjar communities, on whom the Congress is banking heavily to sail through the upcoming general elections.
Union minister and PCC chief Sachin Pilot toured the region on Wednesday to mobilise local party men for the rally next week. The Tonk-Sawai Madhopur constituency is represented by another Union minister Namo Narayan Meena.
The selection of the region for Rahul's first rally in the state ahead of the parliamentary elections shows the significance the Congress and the BJP are giving to Gujjar and Meena voters.
Both the parties have been closely guarding their plans about whom they would be fielding from the region. The two parties could even throw up surprises in Dausa and Tonk-Sawai Madhopur constituencies. Congressmen believe the Meenas voted against their party three months ago, as they expected a hung assembly with the NPP leader Kirori Lal Meena emerging as a king-maker. However, some strong Gujjar leaders in the BJP dashed the hopes of both the Congress and the NPP leader.
"Pilot will win back the Gujjars, while the Meenas would distance from the BJP since none of their local leaders has got a representation in the Raje government," said a Congress office-bearer. Cabinet minister Nand Lal Meena is from the tribal belt of south-west Rajasthan and is considered culturally and social different by the Meenas in the east.
For rest of Rajasthan, the party is pinning its hopes on senior leaders like former chief minister Ashok Gehlot and former union minister C P Joshi. A section of the state Congress even sees Gehlot as the only leader who can win Jodhpur for the party.
However, the party's best hopes still remain in South-West Rajasthan. The party stands strong on seats like Udaipur and Banswara.
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Post by rajbaisoya on Mar 7, 2014 20:02:53 GMT 5.5
फरीदाबाद सीट पर निर्णायक होंगे जाट वोटर जिले में जाट मतदाताओं की संख्या 2.5 लाख हुई, गुर्जर मतदाता दूसरे नंबर पर 2 कुंदन तिवारी फरीदाबाद। फरीदाबाद की लोकसभा सीट पर इस बार रोचक मुकाबला देखने को मिल सकता है। जातिगत समीकरण के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो जाट वोटर निर्णायक भूमिका अदा कर सकते हैं। क्योंकि इनकी संख्या सबसे ज्यादा बताई गई है। आंकड़ों के अनुसार, कुल वोटरों में लगभग 2.5 लाख वोट जाटों का है। 2009 के लोकसभा चुनाव में 11 लाख वोटरों ने अपने मत का प्रयोग किया था, जिसमें जाट मतदाता 1.78 लाख ही थे। दूसरे नंबर पर गुर्जर बताए गए हैं। 2009 के चुनाव में 1.38 लाख गुर्जर वोट थे, जो 2014 के चुनाव में बढ़कर करीब 2 लाख के पास पहुंच गए हैं। नोट: जातिगत आंकड़ों का सरकार की ओर से गजट नोटिफिकेशन नहीं किया जा सका है। ऐसे में अधिकारिक रूप से आंकड़ा उपलब्ध कराने में अधिकारी असमर्थता जता रहे हैं। हमने यह आंकड़े राजनीतिक दलों से लिए हैं। केंद्र व राज्य सरकार ने जाट आरक्षण का दांव भी इस चुनाव में खेला है, इसलिए जाटों को पता है कि यह चुनावी फैसला है। इसका बहुत अधिक असर इस लोकसभा चुनाव पर नहीं पड़ने वाला है। क्योंकि दोनाें ही सरकार पिछले दस वर्ष से सत्ता में विराजमान है। ऐसे में सभी को समझ में आ रहा है कि आरक्षण का दांव केवल वोट बैंक की राजनीति के तहत खेला गया है। - एसी देशवाल, सामाजिक कार्यकर्ता
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Post by vij on Mar 11, 2014 0:30:28 GMT 5.5
फरीदाबाद: कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है। कांग्रेस ने हरियाणा के फरीदाबाद से लोकसभा प्रत्याशी अवतार सिंह भड़ाना को मैदान में उतारा है। अब सबकी नजरे भारतीय जानता पार्टी (भाजपा) पर टिकी हुई हैं कि वो कौन-सा प्रत्याशी मैदान में उतारेगी। क्या भाजपा का प्रत्याशी जाट होगा या गुर्जर। वहीं सूत्रों के अनुसार भाजपा की ओर से लोकसभा चुनावों के लिए पूर्व सांसद रामचंद्र बैंदा और तिगांव से विधायक कृष्णपाल गुर्जर की दावेदारी है और इन दोनों में से किसी एक पर आला कमान को मोहर लगानी है।
फरीदाबार सीट से रामचंद्र बैंदा को प्रबल दावेदार के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि वे इस सीट से भाजपा की टिकट पर तीन बार संसद का रास्ता तय कर चुके है और उनके आरएसएस से संबंध भी अच्छे माने जा रहे हैं। लेकिन रामचंद्र बैंदा का एक कमजोर पहलू भी है कि वे पिछले दो चुनाव कांग्रेस के प्रत्याशी अवतार सिंह भड़ाना से हार चुके हैं और भाजपा के लिए हारे हुए प्रत्याशी पर दाव लगाना काफी रिस्की हो सकता है।
वहीं तिगांव से विधायक कृष्णापाल गुर्जर इस सीट पर उनसे भी प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं क्योंकि उनके भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह और पार्टी से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी से अच्छे संबंध बताए जाते हैं। अब भाजपा रामचंद्र बैंदा पर रिस्क लेती है या कृष्णापाल गुर्जर पर दाव लगाती है इस पर से पर्दा तभी उठेगा जब भाजपा अपना प्रत्याशी घोषत करेगी और पार्टी सूत्रों के अनुसार भाजपा 13 मार्च को अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर सकती है।
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