Post by Slow_Learner on Feb 25, 2015 0:21:05 GMT 5.5
मेरे बड़े भैईिओं को मेरा नमस्कार,
मैं अपने इस लेख के साथ इस नये कानून के बारे मे अपना विचार रखना चाहता हूँ.
मेरा ये लेख बाहौत सारी जगह से इकट्ठी की हुई जानकारी है.
आशा करता हूँ की अगर मेरी कोई जानकारी ग़लत है तो आप मेरी इस भूल को ठीक करने मे मदद करेंगे.
हिन्दी लिखने मे ग़लतियाँ हो रहीं हैं पर समझने लायक तो हो जा रही है.
- पहली बात तो सभी जानते हैं की यह क़ानून कॉंग्रीस लोकसभा चुनाव से ठीक पहले, १८९४ के क़ानून को संशोधित करने के लिए लेकर आई थी. आलोचक बोलते हैं की हार से बचने के लिए ही कॉंग्रेस इस क़ानून को लेकर आई थी. वरना तो असलियत मे ऐसा किसी भी तरह का क़ानून बनाने का उनका उदेस्सया नही था.
- कॉंग्रेस द्वारा बनाए गये क़ानून मे प्राइवेट कंपनी शब्द का प्रयोग था जिसको हटाकर भाजपा ने प्राइवेट एंटिटी शब्द का पर्योग किया है. इसका ये मतलब हुआ की अब ज़्यादा लोग जैसे कीगो NGO ETC. भी इस क़ानून के अंतर्गत भूमि का अधिग्रहण कर सकते हैं.
- कॉंग्रेस द्वारा बनाए गये क़ानून मे सरकार निर्माण कार्यों के लिए भूमि का अधिग्रहण सकते है लेकिन सरकार प्राइवेट हस्पताल, प्राइवेट कोलीज़ ओर प्राइवेट होटेल के लिए भूमि अधिग्रहण नही करेगी. भाजपा ने इसको बदल दिया है. अब सरकार प्राइवेट होटेल के अलावा बाकी सभी प्राइवेट कामों के लिए भूमि अधिग्रहण कर सकती है.
कॉंग्रेस द्वारा बनाए गये क़ानून मे प्राइवेट कंपनी के द्वारा चलाए जा रहे प्रॉजेक्ट मे अधिग्रहण के लिए 80 प्रतिशत लोगों की सहमति अनिवार्या थी. सरकार एवं प्राइवेट कंपनी के सहभागी प्रॉजेक्ट्स के लिए 70 प्रतिशत लोगों की सहमति ज़रूरी थी. भाजपा ने इसमे बदलाव कर दिया है. नये क़ानून मे ये कहा गया है की राषत्रिया महत्व के प्रॉजेक्ट के लिए भूमि के मालिकों से सहमति लेना आवश्यक नही है. इस केटेगरी मे ऐसे प्रॉजेक्ट्स को रखा जाएगा जो रक्षा आक्षेत्रा से जुड़े हो, बिजलीकर्ण से जुड़े हों, सामाजिक निर्माण से जुड़े हों, कम दाम के घर बनाने से जुड़े हों, ओड़योगिक कॉरिडर बनाने से जुड़े हों, सरकार एवं प्राइवेट की सहभागी प्रॉजेक्ट हों. इसमे देखने वाली ये बात है की सारे ही प्रॉजेक्ट इनमे से एक ना एक केटेगरी मे आ ही जाते हैं. तो कुल मिलकर सरकार लोगों से पर्मिशन लेने की ओपचारिकता से भी बचना छाती है. खैर इसके पक्ष मे बोलने वेल लोग ये भी कह रहे हैं की बिजलीकारण जैसे प्रॉजेक्ट से लोगों का विकास ही होगा. बाकी सब आप ही को समझना है की इसका कुछ फयडा है या नही.
अब बात करते हैं सोशियल इंपॅक्ट असेसमेंट की. कॉंग्रेस द्वारा बनाए गये क़ानून मे ये कहाँ गया था की मूववजा सिर्फ़ उन्ही लोगों को नही दिया जाएगा जो भूमि के मलिक हैं. वरण विचार विमर्श कर के ऐसे लोगों को भी चिन्हित किया जाएगा जो उस ज़मीन से किसी तरह जुड़े हुए हों. मतलब एक मजदूर का भी ध्याना रखा जाएगा. असल मे ज़मीन के मलिक को तो पैसा मिल जाता है पर उस ज़मीन पर वर्षों से कम कर रहे मजदूर का भी तो रोज़गार चीन जाता है. भाजपा ने इसमे बदलाब करते हुए उपर लिखी हुई केटेगरी मे इस तरह का कोई भी मुआवज़ा देने से माना कर दिया है.
कॉंग्रेस के क़ानून मे सिंचित भूमि एवं बहुफसली भूमि को सिर्फ़ बाहौत ज़यादा जरूरत होने पर ही अधिग्रहण करने की बात कही थी. हन ये तो हो सकता था की क़ानून का दुरुप्रयोग करते हुए हर एक प्रॉजेक्ट को ही बाहौत महत्वपुर्णा बताया जा सकता था. पर भाजपा ने इस वाली क्लॉज़ को ही डेलीट कर दिया है.
- कॉंग्रेस के क़ानून मे अगर किसी गैर सरकारी कंपनी ने २०११ से लेकर २०१६ तक अधिग्रहण किया है तो उसको मालिकों को नये क़ानून के हिसाब से ४० पार्टीशत तक मूववजा देना पड़ेगा. भाजपा ने इसको बदल कर कर दिया है की ऐसा सिर्फ़ सरकार द्वारा अधिग्रहण की गयी भूमि पर ही लागू होगा. प्राइवेट कंपनी को ऐसा ४० प्रतिशत मूवज़ा देने से क़ानून ने अब छूट कर दी है. दिल्ली के कुछ गुर्जर भाइयों को अब नुकसान हो सकता है.
कॉंग्रेस के क़ानून मे ऐसा था कीं इस क़ानून के अंतर्गत मूवज़ा देने मे या ज़बरदस्ती ज़मीन हथियाने मे सरकारी विभाग का कोई करंचारी अगर ग़लती करता है तो उस विभाग के मुख्या अधिकारी के खिलाफ कोर्ट मे मुक़दमा किया जा सकता है. भाजपा ने इसको बदल दिया है एवं अब किसी कोर्ट मे ऐसा मुक़दमा चलाने के लिए सरकार से पहले पूछना ज़रूरी कर दिया है.
कॉंग्रेस के क़ानून मे अगर भूमि का अधिग्रहण करने के बाद वो पाँच साल तक भी पर्योग नही की जाती है तो उसको भूमि के मालिकों को वापिस किया जाएगा. भाजपा ने इसमे बदलाव कर दिया है. नये क़ानून मे कहा गया है की भूमि को पाँच साल या ऐसा कुछ भी समय जो प्रॉजेक्ट को पूरा होने मे बताया गया हो, के बाद अगर भूमि का पर्योग नही किया गया हो तब वापिस किया जाएगा. इसका ये मतलब हुआ की मान लो किसी कंपनी ने पहले बोल दिया की हमे १५ साल लगेंगे इस प्रॉजेक्ट को बनाने मे. तो १५ साल तक ज़मीन खाली रह सकती मालिकों को वापिस नही मिलेगी १५ साल तक.
कॉंग्रेस के क़ानून मे कुछ ऐसे प्रॉजेक्ट थे जैसे की नाभिकीया उर्जा रेलवे आदि जिनमे की पैसा देने की दर को कम किया जा सकता था. भाजपा ने इसमे बदलाव कर दिया है. अब लगभग हर तरह के भूमि अधिग्रहण के लिए सरकार को बढ़ी हुई दर से ही मुआवज़ा दिया जाएगा. पहला पॉइंट ऐसा लगा मुझे जो किसान के हिट मे भाजपा ने किया.
खैर ये तो जो भी हो रहा है हो ही रहा है. अब एक नज़र इस पर भी दल लेते हैं की ये किस क़ानून को बदलने जा रहा है.
ये क़ानून १८९४ के भूमि क़ानून को बदलने जा रहा है.
उस क़ानून की एक लाइन मैं यहाँ लिख रहा हूँ.
"Whenever it appears to the Government the land in any locality is needed or is likely to be needed for any public purpose or for a company, a notification to that effect shall be published in the Official Gazette…"
इस लाइन का मीनिंग ज़रा समझिए. की अगर सरकार को लगता है की कहीं पर ज़मीन चाहिए तो बस गज़ेट मे इसका नोटिफिकेशन निकल दो और ज़मीन सरकार की. मज़े की बात देखिए हम सब किसानो के कई मसीहा चरण सिंग, मुलायम सिंग, जाई पार्कश नारायण जैसे लोग, अब भी जो इस क़ानून के खिलाफ धरने पर बैठेंगे उनमे से भी कई लोग केन्द्रा मे सरकार मे रह चुके हैं. किसी ने कभी कुछ नही बोला लेकिन अब सबके पास मॅटर आ गया है बोलने का. सब किसान के मित्रा बन गये हैं. ऐसे लोगों से ही सावधान रहने की ज़रूरत है.
इन सबदों के साथ मैं अपनी वाणी को बिरां देता हूँ. कोई ग़लती हुई तो माफ़ कीजिएगा.