vij
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Post by vij on Feb 27, 2016 18:07:18 GMT 5.5
Among the intermediate castes( Gurjar , Ahir , Rajput, Jat, Patidar, Maratha) it is only Gurjars who have till date not have their CM. In near past all these castes had their Chiefs / Rulers in their area of dominance. And each of the above castes have a very specific area of influence even today. All these caste have a current CM or an Ex CM. But Gurjar despite being such a huge caste which has presence from Kashmir in North to Khandesh ( Norther Maharashtra ) in South and from Gujarat in West to Jhansi division of UP in the east have not made it to CM post in any of the states. Although Late Govind Singh Gurjar ( Rajasthan) had held the Lt Governorship of Puducherry. Besides Late Chaudhary Narayan Singh was Deputy CM of Uttar Pradesh in the 1970's.This speaks a lot about the value of Gurjar vote consolidation and unity in the eyes of the Indian politicians.
I have many times said that Kashmir and Rajasthan are the two Indian states which have the maximum probability of having the Gurjar CM in future ,if the Gurjar leaders apply some tact and the Gurjars start voting tactily. There is reason in my belief as in both the states Gurjar have pan state presence, are present in all the districts of Kashmir and Rajasthan. Presently, both the states have good no. of MLA i.e. in Kashmir 9 MLA out of 90 ( 10 % ) and in Rajasthan 13 out of 200 ( 6.5 % ).
As regards , parliament , presently there are about 6 MP , some are veterans , some are first timers but one MP stands out in caring about the Gurjar problems and openly addressing them. He is Shri Sukhbir Singh ( Ambawata) Jaunapuria from Tonk Sawaimadhopur in Rajasthan. He defeated Azharuddin in the last elections. He and only he speaks about the Gurjars of Rajasthan in the Parliament. It is irony that the Gurjar of Rajsthan can easily send 3 MP to the Indian Parliament but since independence there has been only a single or sometimes NIL representation of the Gurjars of Rajasthan in the Indian parliament. It might sound strange but the first Gurjar MP came from Rajasthan only in 1970's. In my opinion 10 - 12 Gurjar MP is a very real possibility seeing the current demographics of Lok sabha seats.
Gurjar need to send more vocal and active leaders in the Parliament.
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Post by manusingh on Mar 1, 2016 20:33:14 GMT 5.5
Vij bhai You have put a great perspective for the gurjars to vote tactfully and to make there political presence in country, which is till date missing among us.In case of Rajasthan in current scenario if things goes pretty well we can hope Sachin pilot is also strong candidate for next CM,moreover its very unfortunate we till date not able to step on ladder of CM post in Delhi where in sheila dixit time we have 7 MLA's out of 70 which is 10% of total ,even though NCR gurjar 's are economically more powerful.
We also lost chance of becoming CM in Haryana last year when Krishan pal Gurjar was most senior and effective leader in BJP at that time, but ignored as we are not united .
In UP also we can try for more strong position if we go together leaving all other differences beside ,which is done by other casts like jaat,rajput ,ahir etc.
It painful to see we do not have single cabinet minister now in govt,no minister in haryana,delhi,1 minister in Rajastahan even though we have good number of MLA's there.
In Uttarakhand also Pranv kumar Champion can become strong candidate but he even does not have strong hold in gurjar and others are strongly against him due to his day to day acts,
Pls provide info about MP and Kashmir ,Maharashtra,
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Post by Ashok Harsana on Mar 29, 2016 14:39:29 GMT 5.5
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट राजस्थान India today group / Aajtak News / जयपुर मार्च 2016 Edited by :- @devruwala
राजस्थान की राजनैतिक रंगभूमि में एक नया सूरमा अपने जौहर दिखाने के लिए जी-जान से जुटा है. अब साफ-साफ दिखने लगा है कि 38 वर्षीय सचिन पायलट अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं. जनवरी, 2014 में पार्टी की जबरदस्त हार के बाद जब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें राज्य कांग्रेस का प्रमुख बनाकर भेजा था, तब वे अनिच्छुक और छोडऩे की हद तक परेशान दिखाई देते थे.
वायु सेना अफसर से नेता बने पिता का वही बेटा धीरे-धीरे मगर ठोस ढंग से उस शख्स के तौर पर उभर रहा है जो कांग्रेस को उसके मौजूदा संकट से उबारेगा. जयपुर में राजस्थान कांग्रेस का मुख्यालय 3 मार्च को उस समय गहमा गहमी से भरा था, जब पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पायलट के नेतृत्व पर मुहर लगाने पर हिचकते नजर आए. संभवतः उन पर यह एहसास होगा कि एक नौजवान और साफ तौर पर ज्यादा करिश्माई पायलट के हाथों हमेशा के लिए उनका तख्ता पलट किया जा रहा है. ऊपर से उनके बेटे वैभव को पार्टी टिकट देने से इनकार कर दिया गया.
इस सबसे लगातार दो दशकों से भी ज्यादा समय से प्रदेश कांग्रेस कमेटी पर निर्विवाद राज करने वाले गहलोत बेचैन हो उठे और यह जाहिर भी हो गया. उस समय उनका चेहरा सख्त हो गया और उस पर दहशत की लकीरें दिखने लगीं, जब वरिष्ठ उपाध्यक्ष विश्वेंद्र सिंह ने पार्टी से पीसीसी प्रमुख के समर्थन में एकजुट होने का आह्वान किया.
विश्वेंद्र पूर्व जाट रियासत भरतपुर के राजा रहे हैं और फरवरी में पायलट की देख-रेख में 200 अन्य समर्थकों के साथ प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी में शामिल हुए हैं. विश्वेंद्र ने जब वहां मौजूद लोगों से पूछा कि ''क्या आप सब सचिन पायलट के नेतृत्व को स्वीकार करते हैं?'' यह वहां मौजूद लोगों के लिए एक किस्म का ऐलान ज्यादा था—साफगोई से इरादों का ऐलान.
वहां छोटी-सी गिनती उन लोगों की भी थी, जिन्होंने पायलट के लिए अपने समर्थन का इजहार कर रही जोशखरोश से भरी भीड़ से अपने को अलग कर लिया. लालचंद कटारिया ने कन्नी काट ली. पूर्व केंद्रीय मंत्री और एआइसीसी के महासचिव सी.पी. जोशी के भरोसेमंद कटारिया प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के दावेदार रहे हैं, जो पद 2014 में पायलट की झोली में चला गया. विश्वेंद्र सिंह को अच्छी तरह पता था कि इस बैठक का एक-एक ब्योरा दिल्ली में राहुल गांधी के पास पहुंचाया जाएगा, इसीलिए उन्होंने चतुराई से अपने सवाल को मंच पर मौजूद पार्टी के दिग्गज नेताओं की ओर उछाल दिया.
एआइसीसी में राजस्थान के प्रभारी महासचिव गुरुदास कामत ने सबसे पहले अपना हाथ उठाया. यह दूसरों के लिए भी ऐसा ही करने का इशारा था.
तरकीब काम आई—प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके और गहलोत के हाथों हाशिए पर डाल दी गईं गिरिजा व्यास, डॉ. चंद्रभान और बी.डी. कल्ला सभी पायलट का समर्थन करने वालों की बढ़ती भीड़ में शामिल हो गए. साफ तौर पर विकल्पहीन और चौतरफा घिर चुके गहलोत ने भी हथियार डाल दिए और अपने बाएं हाथ से इशारा किया. चार दिन बाद 7 मार्च को उन्होंने अपनी भावनाओं का इजहार कर दिया.
उन्होंने कहा, ''विश्वेंद्र ऐसे हाथ उठाने के आयोजन करते रहते हैं. पीसीसी अध्यक्ष और विपक्ष के नेता चुनाव में अगुआई जरूर करते हैं, मगर मुख्यमंत्री या तो हाइकमान चुनता है या निर्वाचित विधायक चुनते हैं.
'' वे अब भी तीसरी बार वापसी की उम्मीद कर रहे हैं. मगर उनके अपने पार्टीजन जिस तरह से खुलेआम उनकी आलोचना कर रहे हैं, उसके मद्देनजर यह उनके मन का लडडू भी साबित हो सकता है.
कई लोग पायलट का नेतृत्व स्वीकार करने की उनकी साफ जाहिर अनिच्छा को खालिस 'ईर्ष्या' के तौर पर देख रहे हैं. अपनी राजसी साख की बदौलत स्वतंत्र हैसियत रखने वाले विश्वेंद्र सिंह कहते हैं कि गहलोत छोटापन दिखा रहे हैं. उन्होंने कहा, ''मुझे तकलीफ हुई. गहलोत ने (कांग्रेस का) एकजुट चेहरा पेश करने की हमारी कोशिशों पर पानी फेर दिया.
वे अपनी पारी खेल चुके हैं. उनके लिए अब पायलट को अपना आशीर्वाद देने का समय आ गया है.
''इसमें कोई शक नहीं कि राजस्थान कांग्रेस में गहलोत के तेजी से छीनते समर्थन के बलबूते पर ही पायलट का सितारा बुलंद हुआ है.
पूर्व पब्लिक हेल्थ इंजीनियर और 2014 में कांग्रेस में शामिल होने के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले सुशील आसोपा ने फेसबुक पर पूर्व मुख्यमंत्री की तीखी आलोचना की और यहां तक सलाह दे डाली कि उन्हें संन्यास' ले लेना चाहिए.
आसोपा कहते हैं कि मुख्यमंत्री के दो कार्यकाल, आठ साल तक पीसीसी की अध्यक्षता और कई बार केंद्रीय मंत्री रहने के बाद भी गहलोत जब मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने अपने गृह राज्य राजस्थान में कांग्रेस की नाव को सिर्फ डुबोने का ही काम किया.
यहां तक कि पूर्व विधायक और स्वर्गीय भैरोंसिंह शेखावत के भतीजे प्रताप सिंह खाचरियावास सरीखी स्वतंत्र आवाजें भी गहलोत से निराश हैं. वे कहते हैं, ''गहलोत सरीखे अनुभवी नेता को सार्वजनिक तौर पर पायलट की बुराई कतई नहीं करनी चाहिए थी. ''आखिर वह क्या है जिसकी वजह से अशोक गहलोत सरीखा अनुभवी शख्स सचिन पायलट सरीखे नौसिखुआ से इतना डरा हुआ है? सबसे अहम बात यह है कि हमेशा गांधी परिवार के खास रहे गहलोत अब पायलट में एक मजबूत, ज्यादा युवा और सियासी तौर पर ज्यादा चतुर और जानकार प्रतिद्वंद्वी देख रहे हैं, जिसकी नए बॉस राहुल गांधी तक सीधी और स्वतंत्र पहुंच है. गहलोत की अगुआई में पार्टी को 2013 के विधानसभा चुनावों में अब तक की बदतरीन हार (200 में से21 सीटें) झेलनी पड़ी, इस वजह से भी हालात उनके लिए और मुश्किल हो गए हैं.
यह सच है कि गुर्जर समुदाय से आने वाले पायलट के कब्जे में राजस्थान का कोई बड़ा जातिगत वोट बैंक नहीं हैं, लेकिन वे चुनावों में अच्छा-खासा असर रखने वाले मीणाओं का भरोसा जीतने में कामयाब रहे हैं, जो उन्हें उनके दिवंगत पिता राजेश पायलट जैसी क्षमताओं से लैस भावी नेता के तौर पर देखते हैं.
यहां तक कि जाट भी पायलट को 'निष्पक्ष' मानते हैं, जो 1998 में मुख्यमंत्री बनने के लिए परसराम मदेरणा (जाट सियासतदां) को चालबाजी से पछाडऩे और बाद में जाटों को ओबीसी कोटे में शामिल करने से आनाकानी करने पर गहलोत के खिलाफ हो गए थे.
तीन वरिष्ठ उपाध्यक्ष— एक अनुसूचित जाति, एक राजपूत और एक जाट—
को शामिल करने के पायलट के फैसले ने पूरे राजस्थान में सभी जातियों में उनकी तरफ खिंचाव पैदा किया है.
अपने पिता की तरह ही मीडिया को समझने वाले पायलट को ऐसे नेता के तौर पर देखा जाता है जिसके पास राजस्थान के लिए एक आधुनिक विजन है और जो मौजूदा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से भी बेहतर क्षमताओं से लैस है.
थोड़ी घबराहट के साथ पायलट की हैसियत को लगातार बढ़ता देखते आ रहे बीजेपी के एक नेता कहते हैं, ''उनका ईमानदार और मजबूत युवा आकर्षण और उनका प्रेरक व्यक्तित्व हमारे लिए मुश्किल बन सकता है.
''सचिन पायलट को कोई गलतफहमी नहीं है. उन्होंने 2014 में मोदी लहर के खिलाफ डटे रहते हुए भी खुलकर माना था कि राज्य की 25 लोकसभा सीटों में से एक भी जीतनी मुश्किल होगी.
कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत सकी. इसके बावजूद उन्होंने अजमेर से चुनाव लडऩे का फैसला किया ताकि उनके ऊपर लड़ाई से पीठ दिखाकर भागने का इल्जाम न लगे.
''किसी मरणासन्न पार्टी को जिन्दा करने के लिए बहुत मेहनत लगती है.'' पायलट ने 14 मार्च को बाड़मेर में कहा और पार्टी के सफाए तथा खुद अपनी हार के बावजूद वे नई ताकत के साथ उभरे.
सितंबर, 2014 में उन्होंने बीजेपी विधायकों के सांसद चुने जाने से खाली हुई चार विधानसभा सीटों के उपचुनाव में सत्तारूढ़ बीजेपी को कड़ी चुनौती पेश की.
वे कहते हैं,
''मैंने अपना आत्मविश्वास बनाए रखा और उससे पार्टी के मिजाज में नई जान आ गई.
''कांग्रेस की पारंपरिक संस्थाओं—युवा कांग्रेस, महिला कांग्रेस, सेवा दल और एनएसयूआई
—के जरिए काम करते हुए उन्होंने राज्य इकाई को इतना जोश से भर दिया कि उसने चार उपचुनावों में से तीन में जीत हासिल करके सबको चौंकाते हुए बड़ा उलटफेर कर दिया. राजे और उनकी पार्टी के पसीने छुड़ाने के लिए इतना ही नहीं हुआ. पायलट की देख-रेख में एनएसयूआई ने राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्र संघ के चुनावों में 2014 और 2015 में लगातार जीत हासिल की.
जानकार पायलट की इस कामयाबी का काफी कुछ श्रेय राजस्थान के युवाओं से उनके मजबूत जुड़ाव को देते हैं. जमीन से जुड़े नेता खाचरियावास कहते हैं, ''वे किसी पर मेहरबानी नहीं करते और गुटबाजी को झटक देते हैं.
'' वे बताते हैं कि उन्हें उस समय हैरानी हुई जब राहुल गांधी ने पायलट की सिफारिश पर उन्हें जयपुर कांग्रेस इकाई का प्रभारी बना दिया.
पायलट ने इस धारणा को भी उलट दिया कि विपक्ष को सत्ता से बेदखली के पांच साल में 'हाथ पर हाथ धरकर बैठ' जाना चाहिए.
पीसीसी प्रमुख के तौर पर उन्होंने अंधाधुंध यात्राएं की हैं और राजस्थान के 33 जिलों में से हरेक में दो साल में दो बार गए, जहां उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें कीं, युवा कार्यकर्ताओं से बातचीत की और दिग्गजों से मुलाकातें कीं.
कांग्रेस के एक युवा कार्यकर्ता कहते हैं, ''इसमें कोई शक नहीं कि वे अब तक के सबसे ज्यादा सुलभ पार्टी अध्यक्ष हैं.''
राजस्थान में अगले विधानसभा चुनाव 2018 में होंगे, लेकिन पायलट पहले ही चुनाव के अंदाज में आ चुके हैं. जब भी मौका मिले, राजे सरकार को मात देने के लिए हमेशा तैयार पायलट कहते हैं,
''मैं जानता हूं कि मुझे पार्टी को ईंट-दर-ईंट खड़ा करना है.''
उन्होंने खनन घोटाले पर लगातार लोगों का ध्यान बनाए रखा है, यहां तक कि उन्होंने सीएजी का भी दरवाजा खटखटाया...
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vij
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Post by vij on Apr 14, 2016 18:14:28 GMT 5.5
Very well said Manu Singh Sahab and and Harsana ji
Gurjar is a politically divided community which is being used by every political party.
See the state wise political performance
The Delhi Gurjars are super rich and concentrated in outer pockets but still none has been made minister in Delhi Govt ever . Delhi is now a state since last 20 years approximately. Sheila Dixit favourded the punjabis. Gurjars were used for thier monbey. Although there are some exceptions like Shri Tanwar ( Amroha MP ) and Shri Jaunapuria ( Tonk Sawai Madhopur MP) who have made good outsiede Delhi .
Similarly in Haryana There are only 4 MLA when ideally there is possibility of 8 - 10 MLA. Heavily Gurjar dominated seats were lost to independents in the last Haryana elections as in at least 3- 4 seats ,as many as 4 - 5 Gurjars were contesting for the same seats.
UP Gurjar are divided between Mulayam, Mayawati and BJP .
In Uttarakhand Ex Royal Shri Kunwar Pranav keeps changing the parties.
In MP despite being a such a large population but no minister and only 1 MLA is elected from BJP.
In Rajasthan there is some hope through a energetic, aggressive and hardworking Sachin Pilot who has taken charge as the state Congress Chief and is emerging a counter force to CM Vasundhara Raje. He has done one good thing that he has made a powerful Gurjar - Meena combine and this will help him.
In Kashmir, the Gurjars are most vocal about their rights and keep sending the representations to the PM, Amit Shah and even the RSS.
Till the day , the Gurjars of all the states become keen, clever and aware about their rights and opportunities , that day no poltical party will ignore them .
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Post by mgorsi on Apr 16, 2016 5:29:01 GMT 5.5
Good discussion here. True, it will look great if you find great Gujjars in all the great places, but it doesn't work like that. Your braderi/clan can be helpful to get started but you have to have a broader appeal to make any advances. Important thing is to remain active in political activities. Doesn't matter if you are not in majority or a winning position, you can still make a contribution and, may be, get some rewards. Just get out there, hone your skills, get noticed, and do some good, whether you are in a Gujjar heartland or out somewhere in otherwise not so comfortable zone.
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braj
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Post by braj on May 19, 2016 1:26:01 GMT 5.5
Ram ram bhaiyon m rajput hun or me puchna chahta hu ki delhi ncr me rajputo ke kitne gaon hain aur unki gurjaro se kitni bnti h ..mere hisab se hum sb bhai hi h ye caste ke basis pr angrez is desh ko baat kr chle gye aur hum aj tk ld rhe h
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