Post by Sheel Gurjar on Sept 28, 2010 18:09:48 GMT 5.5
जितेन्द्र भाई नमस्कार और बहुत बहुत धन्यवाद्
आप यकीन करें मुझे बहुत अच्छा लग रहा है आपने जो सवाल खड़े किये हैं उनका जवाब देने मे. - मै किसी भी व्यक्ति के दवाब में आ कर कुछ ना लिखूं. सच मानिये किसी व्यक्ति के दवाब में आ कर कुछ लिखना या कहना मेरी प्रवर्ती है ही नहीं.
आपने लिखा है कि - " लेकिन क्या आपको नहीं लगता की आप अंतर जातीय विवाह के विषय में बतियाते हुए अपने आप से सच नहीं कह पाए."
भाई आपको ऐसा क्यूँ और किस बात से लगा? क्या आपको लगता है की मैने किसी दवाब मे यह ब्लॉग बनाया है? या कोई तलवार के साए में मुझे लिखना पड़ रहा है? अपने आप से झूठ बोलने के लिए मुझे ब्लॉग बनाने की क्या जरुरत थी? और आखिर में मै आपको बताना चाहता हूँ कि मेरे छोटे भाई पंकज कसाना के जिस सवाल के जवाब में मैने वो सब लिखा इस ब्लॉग का ओव्नर/ मोडरेटर होने के नाते मेरे पास विकल्प था कि मै उस सवाल को ही पब्लिश ना करूँ या फिर उसका जवाब ही ना दूँ. खैर इस विषय में कोई यह समझ ही नहीं सकता कि दूसरा व्यक्ति अपने आप से सच कह रहा है या नहीं.
आगे आपने पूछा है कि क्या मै अपनी बेटी का अंतर जातीय विवाह करूँगा? मेरी बिटिया अभी दस साल की है, उसकी शादी की उम्र जब होगी और अगर उसके वर के चुनाव का फैसला मुझे और मेरी धर्मपत्नी को करना होगा तो हम यक़ीनन कोई सुयोग्य गुर्जर लड़का ही देखेंगे. लेकिन अगर मेरी बिटिया उस उम्र में अपने लिए कोई लड़का पसंद कर लेगी चाहे गुर्जर हो या न हो, मै अपनी बिटिया का विरोध नहीं करूँगा. मै अपने बच्चों पर यह दवाब नहीं डालूँगा कि वे अंतर जातीय विवाह करें. मेरी नज़र में मेरे बेटे और बिटिया में कोई फर्क नहीं है . मैने इसी पोस्ट में पहले ही लिख दिया है कि अगर मेरे बच्चे अंतर जातीय विवाह करना चाहेंगे तो मै यक़ीनन उनका समर्थन करूँगा. मै आज फिर इस बात को दोहराता हूँ कि मेरे लिए मेरे बच्चों की खुशियों से बढ़ कर दुनिया की कोई ख़ुशी नहीं है. हम क्यों भूल जाते हैं कि हम उस संस्कृति से सम्बन्ध रखते हैं जिसमे हमारे ईष्ट देव मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी के समय में भी स्वयंवर प्रथा थी.
जब हम कभी विदेश में जाते हैं तो सबसे पहले किसी भारतीय को ही ढूँढ़ते हैं और वो भारतीय ही हमारा सबसे बड़ा अपना होता है. और उससे मिल कर हमें जो ख़ुशी होती है वो अपने शहर की किसी शादी में अपने रिश्तेदार से मिल कर प्राप्त हुई ख़ुशी से कहीं ज्यादा होती है. जीतेन्द्र भाई मै पहले एक भारतीय हूँ उसके बाद गुर्जर.
आगे आप लिखते हैं कि पहले भी हमारे पूर्वजों ने अंतर जातीय विवाह के लिए पहल की थी.....................
हमारे पूर्वजों ने मुस्लिम गुर्जरों की लड़कियों को अपनी बहु तो बना लिया लेकिन अपनी लड़कियों की शादी मुस्लिम गुर्जर परिवारों में नहीं की. इतना तो आप भी लिखते और मानते हैं. तो आप बताइए की क्या हमारे पूर्वजों ने ऐसा कर के सही किया?
जीतेन्द्र भाई समाज बहुत तेजी से बदल रहा है. मुझे और आपको इस समाज ने नहीं बनाया है बल्कि हमने इस समाज को बनाया है. मेरा जन्म और मेरी परवरिश एक गाँव में ही हुई है. मेरे बड़े भाई की शादी 1993 में हुई थी. उस समय मेरे पिताजी ने स्टेज सिस्टम रखा था. दूल्हा दुल्हन स्टेज पर बैठे थे. हमारे समाज के कई लोगों ने पीठ पीछे - दबी आवाज़ में इसकी भर्त्सना की थी. लेकिन आज क्या हो रहा है? आज दिल्ली के तक़रीबन हर गाँव में स्टेज सिस्टम फल फूल रहा है. बात यह है भाई की 17 साल पहले मेरे पिताजी ने अपने गाँव में एक पहल की थी जिसका उस वक़्त लोगों ने दबे मन से वहिष्कार किया था लेकिन अब धीरे धीरे सभी इस परम्परा को अपना रहे हैं. कम से कम दिल्ली के गुर्जर गाँव में तो जरूर. सबसे पहले तो हमें यह फैसला करना है की हम जिस संस्कृति की बात करते हैं क्या हमारे पूर्वज उसका हिस्सा थे? आज आपके हमारे घरों मे जो घूंघट प्रथा है, क्या मुस्लिम आक्रमण से पहले यह हमारे इतिहास में थी? नहीं ना?
खैर यह मेरे पर्सनल विचार हैं मै किसी की अंतर्भावना को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता और ना ही मेरा इरादा अपने विचारों को जबरदस्ती किसी पर थोपने का है. I wish I made you understand my point even if I fail to convince you!!
Sheel Gurjar
sheelgurjar.blogspot.com
आप यकीन करें मुझे बहुत अच्छा लग रहा है आपने जो सवाल खड़े किये हैं उनका जवाब देने मे. - मै किसी भी व्यक्ति के दवाब में आ कर कुछ ना लिखूं. सच मानिये किसी व्यक्ति के दवाब में आ कर कुछ लिखना या कहना मेरी प्रवर्ती है ही नहीं.
आपने लिखा है कि - " लेकिन क्या आपको नहीं लगता की आप अंतर जातीय विवाह के विषय में बतियाते हुए अपने आप से सच नहीं कह पाए."
भाई आपको ऐसा क्यूँ और किस बात से लगा? क्या आपको लगता है की मैने किसी दवाब मे यह ब्लॉग बनाया है? या कोई तलवार के साए में मुझे लिखना पड़ रहा है? अपने आप से झूठ बोलने के लिए मुझे ब्लॉग बनाने की क्या जरुरत थी? और आखिर में मै आपको बताना चाहता हूँ कि मेरे छोटे भाई पंकज कसाना के जिस सवाल के जवाब में मैने वो सब लिखा इस ब्लॉग का ओव्नर/ मोडरेटर होने के नाते मेरे पास विकल्प था कि मै उस सवाल को ही पब्लिश ना करूँ या फिर उसका जवाब ही ना दूँ. खैर इस विषय में कोई यह समझ ही नहीं सकता कि दूसरा व्यक्ति अपने आप से सच कह रहा है या नहीं.
आगे आपने पूछा है कि क्या मै अपनी बेटी का अंतर जातीय विवाह करूँगा? मेरी बिटिया अभी दस साल की है, उसकी शादी की उम्र जब होगी और अगर उसके वर के चुनाव का फैसला मुझे और मेरी धर्मपत्नी को करना होगा तो हम यक़ीनन कोई सुयोग्य गुर्जर लड़का ही देखेंगे. लेकिन अगर मेरी बिटिया उस उम्र में अपने लिए कोई लड़का पसंद कर लेगी चाहे गुर्जर हो या न हो, मै अपनी बिटिया का विरोध नहीं करूँगा. मै अपने बच्चों पर यह दवाब नहीं डालूँगा कि वे अंतर जातीय विवाह करें. मेरी नज़र में मेरे बेटे और बिटिया में कोई फर्क नहीं है . मैने इसी पोस्ट में पहले ही लिख दिया है कि अगर मेरे बच्चे अंतर जातीय विवाह करना चाहेंगे तो मै यक़ीनन उनका समर्थन करूँगा. मै आज फिर इस बात को दोहराता हूँ कि मेरे लिए मेरे बच्चों की खुशियों से बढ़ कर दुनिया की कोई ख़ुशी नहीं है. हम क्यों भूल जाते हैं कि हम उस संस्कृति से सम्बन्ध रखते हैं जिसमे हमारे ईष्ट देव मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी के समय में भी स्वयंवर प्रथा थी.
जब हम कभी विदेश में जाते हैं तो सबसे पहले किसी भारतीय को ही ढूँढ़ते हैं और वो भारतीय ही हमारा सबसे बड़ा अपना होता है. और उससे मिल कर हमें जो ख़ुशी होती है वो अपने शहर की किसी शादी में अपने रिश्तेदार से मिल कर प्राप्त हुई ख़ुशी से कहीं ज्यादा होती है. जीतेन्द्र भाई मै पहले एक भारतीय हूँ उसके बाद गुर्जर.
आगे आप लिखते हैं कि पहले भी हमारे पूर्वजों ने अंतर जातीय विवाह के लिए पहल की थी.....................
हमारे पूर्वजों ने मुस्लिम गुर्जरों की लड़कियों को अपनी बहु तो बना लिया लेकिन अपनी लड़कियों की शादी मुस्लिम गुर्जर परिवारों में नहीं की. इतना तो आप भी लिखते और मानते हैं. तो आप बताइए की क्या हमारे पूर्वजों ने ऐसा कर के सही किया?
जीतेन्द्र भाई समाज बहुत तेजी से बदल रहा है. मुझे और आपको इस समाज ने नहीं बनाया है बल्कि हमने इस समाज को बनाया है. मेरा जन्म और मेरी परवरिश एक गाँव में ही हुई है. मेरे बड़े भाई की शादी 1993 में हुई थी. उस समय मेरे पिताजी ने स्टेज सिस्टम रखा था. दूल्हा दुल्हन स्टेज पर बैठे थे. हमारे समाज के कई लोगों ने पीठ पीछे - दबी आवाज़ में इसकी भर्त्सना की थी. लेकिन आज क्या हो रहा है? आज दिल्ली के तक़रीबन हर गाँव में स्टेज सिस्टम फल फूल रहा है. बात यह है भाई की 17 साल पहले मेरे पिताजी ने अपने गाँव में एक पहल की थी जिसका उस वक़्त लोगों ने दबे मन से वहिष्कार किया था लेकिन अब धीरे धीरे सभी इस परम्परा को अपना रहे हैं. कम से कम दिल्ली के गुर्जर गाँव में तो जरूर. सबसे पहले तो हमें यह फैसला करना है की हम जिस संस्कृति की बात करते हैं क्या हमारे पूर्वज उसका हिस्सा थे? आज आपके हमारे घरों मे जो घूंघट प्रथा है, क्या मुस्लिम आक्रमण से पहले यह हमारे इतिहास में थी? नहीं ना?
खैर यह मेरे पर्सनल विचार हैं मै किसी की अंतर्भावना को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता और ना ही मेरा इरादा अपने विचारों को जबरदस्ती किसी पर थोपने का है. I wish I made you understand my point even if I fail to convince you!!
Sheel Gurjar
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