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Post by vij on Sept 7, 2014 0:13:27 GMT 5.5
कांग्रेस ने पश्चिमी यूपी में खेला गुर्जरों पर दांव
गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ व गौतमबुद्ध नगर में बने गुर्जर जिलाध्यक्ष -नोएडा उप चुनाव में भी उतारा गुर्जर प्रत्याशी - भाजपा से गुर्जरों का रुझान खत्म करने की रणनीति राज कौशिक, गाजियाबाद : लोकसभा चुनाव में हाशिए पर चली गई कांग्रेस ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में अब गुर्जरों पर दांव खेला है। गाजियाबाद समेत जहां पउप्र के चार जिलों में गुर्जर जिलाध्यक्ष बनाए गए हैं, वहीं नोएडा विधानसभा सीट पर हो रहे उप चुनाव में भी इसी बिरादरी का प्रत्याशी मैदान में उतारा है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में खासा असर रखने वाली गुर्जर बिरादरी पर गाहे-बेगाहे सभी पार्टियों की नजर रहती है। दो दशक से ज्यादा का इतिहास देखा जाए तो पउप्र से सात से 11 विधायक यूपी की विधानसभा में पहुंचते हैं। सन् 2012 जेवर से बसपा के वेदराम भाटी, दादरी से बसपा के सतवीर गुर्जर, खतौली से राष्ट्रीय लोकदल के करतार भड़ाना, कैराना से भाजपा के हुकुम सिंह, मेरठ दक्षिण से भाजपा के रविंद्र भड़ाना, बागपत से बसपा की हेमलता गुर्जर व गंगोह (सहारनपुर) से कांग्रेस के प्रवीण गुर्जर जीत कर विधानसभा में पहुंचे। इनके अलावा स्थानीय निकाय की गौतमबुद्धनगर-बुलंदशहर सीट से इसी बिरादरी के अनिल अवाना व गाजियाबाद-मेरठ से प्रशांत गुर्जर विधानपरिषद में हैं। हापुड़ के गाजियाबाद से अलग होने से पहले जिला पंचायत अध्यक्ष सीट पर सुधा नागर इसी बिरादरी से थीं। गौतमबुद्धनगर के मौजूदा जिला पंचायत अध्यक्ष रविंद्र भाटी भी गुर्जर हैं। गुर्जरों को रिझाने के लिए मौजूदा सपा सरकार ने जहां आगरा के एमएलसी रामसकल गुर्जर को मंत्री बनाया, वहीं गौतमबुद्ध नगर के नरेंद्र भाटी व कांधला, शामली के चौ. विरेंद्र सिंह को राज्यमंत्री का दर्जा देते हुए लाल बत्ती की सौगात दी थी। मोदी पर भरोसा कर दिया साथ लोकसभा चुनाव में पहली बार गुर्जर खुलकर भाजपा के साथ आए। कांग्रेस के यूपी महासचिव हातम सिंह नागर सैंकड़ों साथियों के साथ गाजियाबाद में भाजपा में शामिल हुए। भाजपा के जनरल वीके सिंह ने पहला चुनावी दौरा गुर्जर नेता चौ.पृथ्वी सिंह कसाना के साथ गुर्जर बाहुल्य लोनी में किया तो गुर्जरों ने एक दिन में 23 स्थानों पर सभा कर उनका जोरदार स्वागत किया। हालांकि गुर्जर बिरादरी का जातीय स्वभाव भाजपा की संस्कृति से मेल नहीं खाता लेकिन पूरे देश में चली नरेंद्र मोदी की लहर का पश्चिम उत्तर प्रदेश के गुर्जरों में भी खासा असर रहा। इसका लाभ जहां भाजपा को मिला, वहीं कैराना से हुकुम सिंह, अमरोहा से कंवर सिंह तंवर, दक्षिण दिल्ली से रमेश विधुड़ी, फरीदाबाद से कृष्णपाल गुर्जर व सवाईं माधोपुर से सुखवीर सिंह जौनपुरिया लोकसभा में पहुंचे। विवाह के बाद दूसरी बिरादरी में पहुंचीं गुर्जर पुत्री रक्षा महाराष्ट्र के रवेरा से जीतीं। भाजपा से तोड़ना चाहती है कांग्रेस गुर्जरों के सामाजिक असर व राजनीतिक जागरूकता को देखते हुए कांग्रेस ने इस बिरादरी को रिझाने के लिए पश्चिम उत्तर प्रदेश में गुर्जर कार्ड खेला है। गाजियाबाद से इस बिरादरी के हरेंद्र कसाना, गौतमबुद्ध नगर से महेंद्र नागर, मेरठ से विजय प्रधान व हापुड़ से देवेंद्र प्रधान जिलाध्यक्ष बनाए गए हैं। नोएडा विधानसभा सीट के उप चुनाव में राजेंद्र अवाना को प्रत्याशी बनाया है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि कांग्रेस पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति में गुर्जर को हिस्सेदारी देकर उनका रुझान भाजपा के बजाय अपनी तरफ करने की रणनीति पर काम कर रही है। सत्ता में न रहते हुए कांग्रेस ने संगठन में गुर्जरों को हिस्सेदारी दी है। भाजपा के जवाब का इंतजार माना जा रहा है कि कांग्रेस के इस दांव के बाद पउप्र में इस बिरादरी को सहेज कर रखना भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती हो गया है। आने वाले दिनों में भाजपा इसका राजनीतिक जवाब देती है, अब इस पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।
This is the same Congress which did not give a single ticket to Gurjars in 2014 Lok sabha elections even when knowing the strength of Gurjar Politics in the West UP
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Post by Ashok Harsana on Sept 8, 2014 11:13:33 GMT 5.5
Correct, but now they realise the power of Gujjars but to no avail as its a bit too late for them to play Gujjar card.
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vij
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Post by vij on Sept 27, 2014 17:13:23 GMT 5.5
शामली : हाल ही में हुए उपचुनाव में चोट खाने के बाद फूंक-फूंककर कदम रख रही है। गहन मंथन के बाद भाजपा हाईकमान ने कैराना सीट से नए चेहरे के रूप में सांसद हुकुम सिंह के पारिवारिक भतीजे अनिल चौहान को प्रोजेक्ट किया है। कैराना सीट दो मुस्लिम गुर्जर और एक हिंदू गुर्जर के मैदान में होने से चुनावी सीन काफी दिलचस्प हो गया है। लोकसभा चुनाव-2014 में कैराना से भाजपा विधायक हुकुम सिंह के सांसद चुने जाने के बाद खाली हुई कैराना सीट के उपचुनाव में लंबे इंतजार के बाद भाजपा प्रत्याशी के घोषित होते ही चुनावी सरगर्मियां एकाएक तेज हो गई हैं। भाजपा के घोषित प्रत्याशी अनिल चौहान पहली बार चुनाव मैदान में होंगे, जबकि उनके सामने चुनाव लड़ने जा रहे सपा प्रत्याशी नाहिद हसन वर्ष 2012 में गंगोह सीट से निर्दलीय चुनाव लड़े हैं। वर्ष 2014 में सपा प्रत्याशी के तौर परलोकसभा का चुनाव भी नाहिद लड़ चुके हैं। नाहिद के चाचा व कांग्रेस प्रत्याशी अरशद हसन भी 2007 में रालोद के टिकट पर कैराना से चुनाव लड़ चुके हैं। ऐसे में जहां सपा व कांग्रेस प्रत्याशी के पास चुनावी तर्जुबा हासिल है, वहीं कद्दावर भाजपा नेता व सांसद हुकुम सिंह के पारिवारिक भतीजे होने के नाते अनिल चौहान को उनके अनुभव का लाभ भी मिलना तय माना जा रहा है। चुनाव में मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार बन गए हैं। कैराना सीट पर पांच बार से भाजपा का कब्जा रहा है। कैराना सीट सांसद हुकुम सिंह के साथ-साथ भाजपा की भी नाक का सवाल भी बनी है। --------- सपा की जीत को मंत्रियों की फौज मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उप्र बीज विकास निगम के अध्यक्ष राजपाल सिंह को सीट की जिम्मेदारी सौंपी है। इसके अलावा सपा ने पूर्व मंत्री वीरेंद्र सिंह, राज्यमंत्री रामशकल गुर्जर व श्रम मंत्री शाहिद मंजूर को प्रभारी मंत्री बनाया है, जबकि पर्यटन मंत्री ओमप्रकाश सिंह पहले ही प्रभारी मंत्री हैं।
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Post by vij on Oct 19, 2014 19:47:32 GMT 5.5
SP candidate , Nahid Hassan ( Muslim Gurjar ) won from Kairana defeating BJP candiate Anil singh Chauhan ( Hindu Gurjar )
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vij
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Post by vij on Nov 20, 2014 23:44:52 GMT 5.5
Gurjars should be aware of RLD again trying to fool them. Just for Gurjar votes it is giving many posts to Gurjars . Gurjar in west UP should remain united and not waste their votes
Gurjar leaders like chaudhary Dhanpal of Baghpat and Chandan Chauhan of Muzaffarnagar should join a better party
लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद रालोद अपनी खोई जमीन वापस लाने की तैयारी में जुट गया है। इसके लिए संगठन में फेरबदल किया जा रहा है। फेरबदल के दौरान पार्टी आलाकमान जातीय समीकरण बैठा रहे हैं। वेस्ट यूपी में जाट-गुर्जर समीकरण बनाने की कवायद की जा रही है। वेस्ट यूपी में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए पार्टी वेस्ट यूपी की राजनीति को मेरठ से कमांड करेगा। इसके लिए मेरठ में पार्टी वेस्ट यूपी का अपना मुख्य कार्यालय खोल रही है। पार्टी महासचिव जयंत चौधरी खुद इस दफ्तर की कमान संभालेंगे।
पार्टी आलाकमान ने संगठन में फेरबदल शुरू कर दिया है। वेस्ट यूपी इकाई में अनुभवी नौजवान कार्यकर्ताओं को जगह दी जा रही है। बागपत जिलाध्यक्ष बदल दिया गया है। बागपत जिले में की कमान धनपाल गुर्जर को मिली है। वह पहले भी पार्टी के जिलाध्यक्ष रह चुके हैं। इस बार पार्टी ने बागपत में लोकसभा चुनाव जिलाध्यक्ष अनिल जैन की अगुवाई में लड़ा था, लेकिन पार्टी को चुनाव में करारी हार मिली थी। यहां तक कि अपने गढ़ छपरौली में वह तीसरे स्थान पर खिसक गए।
साल 2012 में ढह गया था पार्टी का किला
रालोद का जनाधार बागपत क्षेत्र में साल 2012 में ही ढह गया था। विधानसभा चुनाव के दौरान यहां रालोद अपनी तीन सीटों में से केवल एक छपरौली विधानसभा सीट ही बचा सकी थी। बड़ौत और बागपत विधानसभा सीट पर यहां पार्टी को करारी हाल मिली थी। पूर्व जिलाध्यक्ष धनपाल गुर्जर को जिलाध्यक्ष मनोनीत करते हुए चौधरी अजित सिंह ने उन्हें पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए कहा है।
युवाओं पर देगी रालोद अधिक जोर
पार्टी सूत्रों के अनुसार रालोद अपने खोए जनाधार को वापस पाने के लिए युवाओं को अपने साथ जोड़ेगी। मुजफ्फरनगर दंगें के दौरान पार्टी को हुए नुकसान की भरपाई के लिए पार्टी पदाधिकारी इस क्षेत्र में ज्यादा गतिविधियों पर जोर देंगे। पार्टी ऐसे युवाओं को आगे ला रही है जो 2017 में जयंत चौधरी के कंधे से कंधा मिलाकर चल सके। वेस्ट यूपी यूथ विंग का अध्यक्ष चंदन चौहान को बनाया गया है। चंदन चौहान पूर्व सांसद संजय चौहान के बेटे हैं।
जातीय समीकरण फिट कर रहे हैं आंकड़ें पार्टी हाईकमान जातीय समीकरण जोड़ने पर अधिक जोर दे रही है। इसीलिए पार्टी एक ओर जहां जाट-गुर्जर समीकरण बैठा रही है। वहीं, दूसरी और वेस्ट यूपी में बिजनौर के पूर्व सांसद और वेस्ट यूपी अध्यक्ष मुंशीरामपाल को अति पिछड़ों को पार्टी से जोड़ने की जिम्मेदारी दी गई है। अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ में अनीस कुरैशी को जिम्मेदारी सौंपी गई है।
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